तनहा ज़िन्दगी





तनहा  ज़िन्दगी में गुजर बसर करते है 
काफिले के साथ भी तनहा-तनहा चलते है 


दिन में भीड़ करती है मुझे परेशान 
रात को तन्हाई में भी सोया नहीं करते है 


परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरां
गुजरी उम्र …हम अकेले चला करते है 


रात का सन्नाटा आवाज़ देती है मुझे 
जाऊं कैसे हम तो तन्हाई में डूबे रहते है 

17 responses to this post.

  1. bahut khub……gahare bhav

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना

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  3. atisunder..bhaavnaon ki abhivyakti.

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  4. परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरांगुजरी उम्र …हम अकेले चला करते है ……..गहरे अहसास की कविता

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  5. रात का सन्नाटा आवाज देती है मुझे जाऊं कैसे हम तो तन्हाई में डूबे रहते है सुंदर भावपूर्ण ग़ज़ल।

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  6. परछाईं को देख मैं हूँ इस कदर हैरांगुजरी उम्र …हम अकेले चला करते है वाह! बहुत सुन्दर रचना….सादर बधाई…

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  7. भावपूर्ण रचना….

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  8. बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति ….

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  9. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .

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  10. गहरे भाव। आभार।

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  11. बहुत सुन्दर भाव समन्वय

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  12. sundar bhavapoorn rachana …abhaar

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  13. कल 08/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट! नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद

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  14. सुन्दर रचना सुन्दर अभिव्यक्ति ,बधाई .मेरे ब्लॉग पर भी पधारें .

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