मन कोयला बन जल राख हुई
धूआं उठा जब इस दिल से
तेरा ही नाम लिखा फिर भी
हवा ने , बड़े जतन से
तेरी याद मन के कोने से
रह-रह कर दिल को भर जाए
जिन आँखों में बसते थे तुम
उन आँखों को रुला जाए
जाने क्यों दिल की बस्ती में
है आग लगी ,दिल जाने ना,
अंतस पीड़ा की ज्वाला भी
जलता जाए बुझ पाए ना
नितांत अकेला सा ये दिल
शब्दों से भी छला जाए
टूट कर बिखरे पल ये
हाथों से क्यों छूटा जाए ?
सौगात -ए – ग़म न माँगा था
इश्क़-ए -दुनिया के दामन से
जो भी मिला सर आँखों पर
कुछ इस मन से कुछ उस मन से
धूआं उठा जब इस दिल से
तेरा ही नाम लिखा फिर भी
हवा ने , बड़े जतन से
तेरी याद मन के कोने से
रह-रह कर दिल को भर जाए
जिन आँखों में बसते थे तुम
उन आँखों को रुला जाए
जाने क्यों दिल की बस्ती में
है आग लगी ,दिल जाने ना,
अंतस पीड़ा की ज्वाला भी
जलता जाए बुझ पाए ना
नितांत अकेला सा ये दिल
शब्दों से भी छला जाए
टूट कर बिखरे पल ये
हाथों से क्यों छूटा जाए ?
सौगात -ए – ग़म न माँगा था
इश्क़-ए -दुनिया के दामन से
जो भी मिला सर आँखों पर
कुछ इस मन से कुछ उस मन से
Posted by sadhana vaid on April 13, 2014 at 11:18 pm
भावपूर्ण एवं आत्मीय सी प्रस्तुति ! शुभकामनायें !
Posted by हिमकर श्याम on April 13, 2014 at 3:23 pm
बहुत बढ़िया…
Posted by सुशील कुमार जोशी on April 13, 2014 at 10:52 am
सुंदर !
Posted by अभिषेक कुमार अभी on April 12, 2014 at 7:35 pm
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (13-04-2014) को ''जागरूक हैं, फिर इतना ज़ुल्म क्यों ?'' (चर्चा मंच-1581) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…
Posted by धीरेन्द्र सिंह भदौरिया on December 20, 2013 at 10:04 pm
सुंदर अभिव्यक्ति,भावपूर्ण पंक्तियाँ …!
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RECENT POST -: हम पंछी थे एक डाल के.