पिघलते क़तरों में जो लम्हा है जीया
उन लम्हों की क़सम मैंने ज़हर है पीया –
कोई वादा नहीं था इक़रार-ए-बयाँ का
कानों से उतर के वो दिल में बसा था ॥
अश्क़ों से लबालब ये वीरान सी आँखें
ग़म की ख़ुमारी और बोझल सी रातें –
दीदार-ए-यार कभी सुकूँ-ए-दिल था
देके दर्दे इश्क़ तेरे साथ ही चला था ॥
नालिश जो थी तेरे लिए तेरे ही खातिर
बयाँ न हो पाया वो अहसास गुज़र गया –
दरों दीवार जो दो दिलों का था आशियाना
मजार-ए-इश्क़ आज वहीँ पे दफ़न है ॥
23 Aug
पिघलते क़तरों में……….
2 Jul
माथे की लकीरों में
माथे की लकीरों में बसा है
तज़ुर्बा – ए -ज़िन्दग़ी
यूं ही नहीं बने हैं
ज़ुल्फ़-ए-सादगी ॥
ख़्वाहिशों से भरा घर
मुक़म्मल हो नहीं सकता
बहुत सी ठोकरें खाकर
सम्भला है ज़िन्दगी ॥
अरमान अपने भुलाकर ही
पाया है अपनों का प्यार
हसरतें अपनी छुपाकर ही
मिली है खुशियां हज़ार ॥
हम बे मुरव्वत मुरादबीं
अपने इरादों को मसलकर
अपनों में बसे अपनों की
अपनीयत ढूंढते है ॥
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6 Apr
वो दिन बारिश के…..
याद है वो दिन बारिश के ?
जब भी निकले- छाते को बंद कर –
लटकाए से घूमा करते थे –
भींगना था पर पानी में ही नही ,
तुम्हारे साथ बीते हुए पलों के
बौछारों में –
सनसनाती हवाएं , सोंधी सी
मिटटी की खुशबू , बताये देती थी ,
मौसम भींगा है –
बहुत देर तक – चुपचाप-जाते हुए
लम्हों को देखा करते थे – कोशिश थी –
पकड़ने की-
वक्त अपने वक्त के हिसाब से –
वक्त दिखाकर चला गया-हम लम्हों –
को ढूँढ़ते रह गए –
रास्ते अब भी वहीं है –
बारिश के दिनों में भींगती हुई –
बस दो हाथ अलग हुए ॥
31 Mar
छुईमुई सी लम्हें ….
तेरे खातिर जो दिल ये
डोल -डोल फिरता था
तुझसे ही जाने क्यों ये
मुझको छिपाए फिरता था
31 Jan
लो पूरब से सूरज निकला ….
नन्हें पाँव रात आई
6 Aug
भींगी हुई आँखों से………
भींगी हुई आँखों से जाती हुई रातों ने ,
जाने क्या-क्या कह गयी उसने बातों बातों में ॥
बातें जो कह गयी चुपके से रातों ने ,
अश्कों ने लिख दिए लम्हों की ज़ुबानी ये ॥
अश्कों के बूंदों में डूबी हुई ज़िन्दगी ,
जाने कब सुबह हो और ये आँखें खुलें ॥
न रहे हम होश में ख़ामोश है ज़िन्दगी ,
आ बैठें पहलू में सुन लूं तेरी ख़ामोशी ॥
मैं भी अंजाना हूँ ,तू भी अंजानी है ,
अंजानी रातों का बस ये कहानी है ॥
25 Jul
रंग….फीका सा
हंसती हुई आँखों में जो प्यार का पहरा रहता है-
असल में उन आँखों के ज़ख्म गहरे होते है ||
जलती हुई लौ भी जो उजारा करे मजारों को-
सुना है उन मजारों को बड़ी तकलीफ होती है ||
दिल जो किसी के प्यार का जूनून लिए चलता है-
उन्हीं दिलों में धोखों के अफ़साने छुपे रहते है ||
रात जो लेकर आती है चांदनी की बौछारें –
उन्हीं रातों में अमावस की रात भी शामिल होती है ||
हवाओं में बहती हुई दिखते है जो प्यार के रंग-
उन्हीं रंगों में एक रंग फीका सा भी होता है ||
11 Apr
सौ साल बाद……..
सौ साल पहले भी मैंने तुम पर कविता रचा था जिन आँखों को आंसुओं से धोया था हमने सांस लेने की आदत थी….. लेता रहा तक |
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7 Apr
लम्हा जब लकीरों में बंटा…….
तो उस पार मैं खड़ा था |
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16 Mar
वो शख्स न मिला ••••••••
वो शख्स नहीँ मिला |
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zara hat ke