घोर घनघटा…………


डूबा दिन ढल गयी शाम ,रोक न पाऊँ मैं
आकाश सज गए तारों से ,कदम बढाऊँ मै

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घोर घनघटा नहीं चांदनी , न रोशनी तारों की
उतावला मन बिखरा पल , उठे मन में विचारें भी

न हो ये शाम रात बदनाम , दिल बरबस तनहा
मन बेचैन…सगरी रैन कब होवे सुबहा

जाने क्या दिन का राज़ , उत्फुल्ल है मन
रोशन है जग सारा ,हुआ मन रोशन

12 responses to this post.

  1. बहुत खुबसूरत प्रस्तुति ….

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  2. बहुत सुंदर भावों से लिखी शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /please visit my blog .thanks.www.prernaargal.blogspot.com

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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  4. खूबसूरत मनोभावों की उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !

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  5. कल 25/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!

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  6. komal ehsaas se saji ek rachna..

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  7. सुन्दर रचना

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  8. बहुत ही खुबसूरत….

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  9. बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति .कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.

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